बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
अथवा
जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के मूल तत्व क्या हैं?
अथवा
पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की कोई दो अवस्थाएँ।
अथवा
'संज्ञानात्मक विकास' से क्या तात्पर्य है? जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
संज्ञानात्मक विकास
(Cognitive Development)
संज्ञान अंग्रेजी शब्द "Cognition" से बना है जिसका डिक्शनरी अर्थ होता है- “ज्ञान” (Knowledge)। Laura E. Berk ने अपनी पुस्तक 'Child Development' में Cognition के बारे में लिखा है- "Cognition refers to the inner processes and products of the mind that lead to "Knowing", It includes all mental activity-attending, remembering, symbolizing, categorizing planning, reasoning. problem solving, creating and fantasizing."
स्टॉट (Stott) के अनुसार - " संज्ञानात्मक विकास वह क्षमता है जो बाह्य वातावरण में विचारपूर्वक प्रभावपूर्ण ढंग से तथा सुविधा के साथ कार्य करने की क्षमता है। "
"Cognitive development is the capacity of function with understanding effectiveness and facility in relation to the external environment."
शिशुओं में संज्ञानात्मक विकास का अंकुरण उसके जन्म के 2 सप्ताह बाद से ही प्रारंभ हो जाता है। परन्तु वातावरण के विभिन्न उद्दीपकों में अंतर व उन्हें पहचानने की योग्यता 3 माह बाद से ही तीव्र गति से विकसित होने लगती है। यही कारण है कि 3-4 माह का शिशु अपनी माता एवं परिचितों को देखकर मुस्कराने लगता है। यहाँ तक कि वह माता के आने की आहट एवं उसकी बोली को दूर से ही पहचान जाता है। 5-6 माह का शिशु परिचितों एवं अपरिचितों के बीच भेद करने लग जाता है। वह अपरिचित को देखकर भय संवेगों का प्रदर्शन करता है। 7-8 माह का शिशु किसी सुन्दर से खिलौने को पकड़ने के लिए अपने पूरे शरीर को ही गतिमान कर देता है और उसे झपटकर दोनों हाथों से पकड़ता है। यह सब क्रियाएँ संज्ञानात्मक विकास के कारण ही संभव हो पाती हैं।
संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में अमूर्त्तकरण (Abstraction), अंतरण (Transfer), विभेदीकरण (Differentiation), प्रत्यक्षीकरण (Perception), स्मरण (Remembering), संकेतीकरण (Symbolizing), वर्गीकरण (Categorizing) आदि क्रियाएँ सन्निहित होती हैं। ये सभी क्रियाएँ आँतरिक, मानसिक व अव्यक्त होती हैं, जो मस्तिष्क में स्वतः ही चलते रहती हैं और यह वातावरणीय उद्दीपकों (Environmental stimuli) तथा उसकी प्रतिक्रियाओं/ व्यवहार के बीच एक कड़ी का कार्य करती हैं।
पियाजे का संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त
(Piaget's Cognitive Developmental Theory)
बाल विकास के क्षेत्र में पियाजे का संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त काफी लोकप्रिय है। जीन पियाजे (Jean Piaget) ( 1896-1980) स्वीस मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यद्यपि अमेरिकन मनोवैज्ञानिकों को जीन पियाजे के इस सिद्धान्त के बारे में जानकारी 1930 से ही थी परन्तु उन्होंने इस सिद्धान्त को अधिक महत्व नहीं दिया। उसका प्रमुख कारण यह था कि पियाजे का विचार एवं बालकों के अध्ययन, कार्य के तरीके अमेरिकन मनोवैज्ञानिक के व्यवहारात्मक तरीके (Behavioural Method) से बिल्कुल भिन्न थे। पियाजे ऐसा कदापि नहीं मानते थे कि बालकों को जबर्दस्ती अथवा थोपकर ज्ञान अर्जित करवाया जा सकता है बल्कि जैसे-जैसे बालक बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे वे समाज व राष्ट्र के सम्पर्क में आते हैं और उसी अनुसार वे चीजों को सीखते हैं। बालक स्वयं ही 'सक्रिय सीखने वाले' (Active learner) होते हैं वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं। उनका मस्तिष्क ही ज्ञान की संरचनाओं से बना होता है जिनमें बुद्धि एवं ज्ञान का भंडार होता है। According to Piaget, “Children are active learners whose minds consists of rich structure of knowledge."
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त काफी हद तक जीव विज्ञान (Biology) से प्रभावित है। उनका मानना है कि जिस प्रकार शरीर की प्रत्येक रचना व अंग वातावरण के साथ सफल . समायोजन के लिए अनुकूलन (Adaptation) कर लेता है उसी प्रकार मस्तिष्क भी बाह्य वातावरण/ बाह्य संसार के साथ अनुकूलन (Adapt) हो जाता है। उदाहरणार्थ- शैशवावस्था ( Infancy) एवं पूर्व बाल्यावस्था में बालकों की सोच एवं समझ किशोर बालकों की अपेक्षा काफी भिन्न होती है। एक नन्हा सा बालक यह नहीं समझ पाता है कि उसकी माँ ने उसके खिलौने को छुपा दिया है। परन्तु जब वही बालक बड़ा हो जाता है तो वह यह समझने लगता है कि उसकी माता ने उसके प्रिय खिलौने को छुपा दिया है और वह उसे ढूँढ़ने का पूरा प्रयास करता है।
जीन पियाजे के प्रमुख विचार निम्न प्रकार से हैं-
(1) निर्माण एवं खोज (Construction & Invention) - बालक जिज्ञासु प्रवृत्ति (curious) का होता है। इसलिए वह सदैव यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? अगर ऐसा नहीं होगा तो क्या होगा? वह कल्पनाशील होता हैं। वह अपनी कल्पनाओं में परी से बातें करता, परीलोक का भ्रमण करना, भूत-प्रेतों के बारे में सोचता रहता है। वह सदैव यह जानने के लिए प्रयत्नशील रहता है कि उसके विचार सम्बद्धतापूर्ण से मेल खाते हैं या नहीं। अतः वह उन व्यवहारों एवं विचारों की खोज एवं निर्माण करता रहता है जिसे उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से कभी देखा नहीं है।
पियाजे का ऐसा मानना है कि संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development) खोज / अनुसंधान (Invention) पर आधारित है न कि नकल पर (copying)। बालक किसी भी क्रिया या व्यवहार को स्वयं करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। उदाहरणार्थ – यदि एक 3.5 से 4 वर्ष के बालक के समक्ष एक खिलौना (तोता या हाथी) के विभिन्न पार्ट्स रख दिये जाएँ तो वह कुछ प्रयास के बाद उन पार्ट्स को जोड़कर (हाथी /तोता) खिलौना तैयार कर देता है तो ऐसा उसकी मानसिक एवं बौद्धिक विकास के कारण होता है और यह क्रिया 'खोज एवं निर्माण' (Invention and construction) से सम्बन्धित है।
(2) कार्य क्रिया का अर्जन (Acquisition of Operation) - पियाजे के सिद्धान्त को समझने के लिए कार्य क्रिया (operation) को समझना अत्यावश्यक है। यहाँ कार्य क्रिया से आशय उस विशिष्ट प्रकार के मानसिक रुटीन (Mental routine) से है जिसकी मुख्य विशेषता उत्क्रमणशीलता (Reversibility) है। प्रत्येक कार्य क्रिया का अपना एक तर्कपूर्ण विपरीत (उत्क्रमणशीलता) होता है। उदाहरणार्थ- यदि एक गेंद को दो भागों में काट दिया जाए और फिर इन दोनों भागों को जोड़ दिया जाए तो इसे कार्य क्रिया कहेंगे। कार्य क्रिया के माध्यम से बालक मानसिक रूप से वहाँ पहुँच सकते हैं जहाँ से उन्होंने कार्य का प्रारंभ किया था।
पियाजे का ऐसा मानना है कि जब तक बालक किशोरावस्था को प्राप्त नहीं कर लेता है, तब तक वह विभिन्न विकास अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न तरीके से विभिन्न कार्य-क्रिया का अर्जन करते रहते हैं। बालक का एक विकास अवस्था से दूसरी विकास अवस्था में पदार्पण के लिए मुख्यतः दो क्रियाएँ करनी आवश्यक होती हैं-
(i) व्यवस्थापन एवं संतुलन स्थापित करना (Accomodation and Equilibrium) - व्यवस्थापन ( Accomodation) से तात्पर्य नई वस्तुओं/ विचारों एवं समायोजन स्थापित करना है। दूसरे शब्दों में, अपने विचारों और क्रियाओं को नये विचारों के साथ तालमेल बिठाना ही व्यवस्थापन है। उदाहरणार्थ- उम्र बढ़ने के साथ ही बालकों का सम्पर्क बाहरी वातावरण से होता है। अब वह केवल घर में अथवा माता के आंचल में ही नहीं छुपना चाहता है बल्कि स्कूल जाने लगता है। वहाँ उसे अपने सहपाठियों से खेल के साथियों से एवं शिक्षक के साथ समायोजन स्थापित करना पड़ता है। अतः बालक नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करना सीखता है। ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि शुरू-शुरू में बच्चा स्कूल जाने से डरता है, दूसरे बालकों के समक्ष बोलने में घबराता है। परन्तु थोड़े ही दिनों में वह इन परिस्थितियों से सामंजस्य बिठा लेता है और अब उसे कोई तनाव एवं समस्याएँ नहीं आती हैं। क्योंकि बालक का मानसिक एवं बौद्धिक विकास होता है तथा बालक परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है। इसी को पियाजे ने “व्यवस्थापन तथा संतुलन स्थापित करना (Accomodation and Equilibrium) कहा है।
(ii) सात्मीकरण करना (Assimilation) – इसे "परिपाक' (learning) या 'सदृश करना' या सीखना भी कह सकते हैं जिसका अर्थ है "To make like to " एक वस्तु या विचार का किसी नये वस्तुओं या विचारों के साथ मिल जाना या समावेश होना ही 'सात्मीकरण' कहलाता है। अन्य शब्दों में, पुराने विचारों या आदतों को नये विचारों के साथ प्रयुक्त करना है तथा घटनाओं को वर्तमान विचारों के साथ एक भाग के रूप में देखना है।" पियाजे ने इसी को बालक के प्रत्यक्षात्मक - गत्यात्मक समन्वय (perceptual motor co-ordination) बताया है। हरेक बालक में, हरेक अवस्था में कुछ-न-कुछ विचारों एवं क्रियाओं का operation के सेट विद्यमान होते हैं। इन्हीं कार्य क्रिया (operation) में नये विचार समाविष्ट हो जाते हैं। उदाहरणार्थ - यदि विभिन्न आकार के काँच के गिलास में दूध को डाला जाए तो 4-5 वर्ष का बालक यह देखकर खुश हो जाता है कि दूध का आकार विभिन्न गिलासों में भिन्न-भिन्न प्रकार का है। मगर वह यह नहीं समझ पाता है कि आखिरकार ऐसा क्यों होता है? परन्तु जब वही बालक 8-9 वर्ष का हो जाता है तो वह यह समझने लगता है कि दूध तरल पदार्थ है और इसी के कारण उसका आकार परिवर्तित होता रहता है। अतः इस उदाहरण से स्पष्ट है कि पुराने विचार नये विचार के साथ मेल खा जाते हैं।
(3) क्रमिक विकासात्मक अवस्थाएँ ( Sequential Developmental Stages) – पियाजे के संज्ञान विकासात्मक सिद्धान्त के अनुसार बालक की आयु जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे उसका मस्तिष्क का विकास होता है। उसका अनुभव का क्षेत्र भी विस्तृत होता जाता है। इसी आधार पर पियाजे ने विकास की मुख्य चार अवस्थाओं का वर्णन किया है-
(i) सेन्सोरीमोटर
(Sensorimotor)
शिशु जन्म से 2 वर्ष की अवस्था सेन्सोरीमोटर कहलाती है। इस अवस्था में शिशु अपने हाथों, कानों, आँखों, मुँह एवं पैरों से कार्य करता है और उसकी बुद्धि उसके कार्यों द्वारा व्यक्त होती है। उदाहरणार्थ - तकिये के नीचे छिपे हुए खिलौने को बालक ढूँढ़ निकालता है। पियाजे इसी चीज को बालक का बौद्धिक कार्य मानते हैं। साथ ही वे इसे 'operation' की संज्ञा न देकर 'स्कीमा ऑफ एक्शन', (Schema of Action) की संज्ञा देते हैं। उनका मानना है कि 0-2 वर्ष की अवस्था के बच्चों में 'Schema of Action' के अनेक सेट पाये जाते हैं। लॉरा ई० बर्क ने child Development में लिखा है- "Infants 'think' by acting on the world with their eyes, ears, hands and mouth. As a result they invent ways of solving sensorimotor problems, such as pulling a lever to hear the sound of a music bole, finding hidden toys and putting objects in and taking them out of containers.”
सेन्सोरीमीटर की अवस्था को पुनः 6 भागों में बाँटा गया है-
(1) प्रतिवर्त क्रिया (Reflex action) (0-1) महा- शिशु जन्म से 1 माह की अवस्था प्रतिवर्त क्रिया (reflexes) की होती है। इस अवस्था में शिशु प्रकाश को देखकर आँखें बंद कर लेता है।
(2) प्राथमिक चक्रीय प्रतिक्रिया (Primary circular reaction) - शिशु की 13 माह की अवस्था प्राथमिक चक्रीय प्रतिक्रिया की कहलाती है। इस अवस्था में शिशु माँ को पहचानने लगता है, आँखों को घुमाने लगता है और जिस ओर से संगीत की ध्वनि या शोर सुनाई देता है, उस ओर उसका ध्यान एकाग्रचित हो जाता है।
(3) द्वितीय चक्रीय प्रतिक्रिया (Secondary circular reaction) - शिशु की 4-6 माह की अवस्था द्वितीय चक्रीय प्रतिक्रिया कहलाती है। इस अवस्था में, शिशु माँ को देखकर हाथ-पैर फैलाने लगता है और इस तरह का हाव-भाव व्यक्त करता है कि माता झट से उसे गोद में उठा ले। इसी प्रकार किसी चीज को पकड़ने के लिए शिशु केवल हाथों को ही नहीं फैलाता है, बल्कि पूरा शरीर को ही गतिमान कर देता है।
(4) द्वितीयक प्रतिक्रिया का समन्वय (Co-ordination of secondary reaction) शिशु की 7-10 माह की अवस्था “Co-ordination of secondary reaction" कहलाती है। इस अवस्था का शिशु बैठना सीख जाता है। वह चीजों को उठाकर मुँह में डालता है।
(5) तृतीयक चक्रीय प्रतिक्रिया (Tertiary circular reaction) – यह शिशु की 11 से 18 माह तक की अवस्था होती है। इसमें शिशु स्वयं चलने, खाने जैसी क्रियाएँ करने लगता है।
(6) सेन्सोरीमोटर अवधि की अंतिम अवस्था (Final stage of the sensorimotor period) शिशु की 18-24 माह की अवस्था सेन्सोरीमीटर की अंतिम अवस्था होती है। इस उम्र के होते-होते बालक छोटे-छोटे वाक्यों एवं शब्दों को बोलने लगता है।
(ii) प्रीऑपरेशनल अवस्था
(Pre-operational Period)
शिशु की 2-7 वर्ष की विकास अवस्था प्री-ऑपरेशनल अवस्था कहलाती है। इस अवस्था के बालक अपने पूर्व की सूचनाओं एवं विचारों को तो दर्शाते ही हैं साथ ही नई सूचनाओं / विचारों का संग्रह भी करते हैं। इस अवस्था में शिशु का भाषा विकास भी होता है। अब शिशु वस्तुओं एवं घटनाओं के बारे में समझने लगता है और उसी के मुताबिक प्रतिक्रिया भी करता है। वह कई समस्याओं का समाधान भी स्वतः ही कर लेता है। वह कई चीजों को देखता है, समझता है और उसके मुताबिक प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है। उदाहरणार्थ- “आकाश में इन्द्रधनुष को देखकर बालक अत्यंत ही खुश होता है। मगर वह यह नहीं समझ पाता है कि आखिरकार आकाश में सतरंगी इन्द्रधनुष का निर्माण किस प्रकार से होता है। इस अवस्था के बालकों में आत्मकेन्द्रिता/ अहम् केन्द्रिता (Egocentricity) प्रबल होती है। इस कारण वे स्वप्रेमी (self loved) होते हैं। परन्तु 7 वर्ष की अवस्था को प्राप्त करते-करते उनमें सामाजिकता के गुण का विकास होता है। अब वे धीरे-धीरे समूह प्रेमी हो जाते हैं। बच्चों का मन खेल के साथियों एवं विद्यालय में लगने लगता है।
6 वर्ष से कम आयु के बालकों में संज्ञानात्मक विकास (cognitive development) बहुत ही कम देखने को मिलता है। परन्तु उचित शिक्षण-प्रशिक्षण प्रदान करके बालकों में इस गुण का विकास किया जा सकता है।
(iii) कंक्रीट ऑपरेशनल अवस्था
(Concrete Operational Period)
बालक की 7-11 वर्ष की अवस्था concrete operations की अवस्था होती है। इस अवस्था में वह अपने संवेदांगों की सहायता से चीजों को समझने लगता है। मानसिक एवं बौद्धिक विकास होने के कारण वह तर्क करना सीख जाता है। वह कई चीजों के बारे में गहराई से जानने का प्रयास करता है। क्योंकि इस उम्र का बालक तार्किक एवं खोजी प्रवृत्ति का होता है। उसके मन में अनेक विचार उठते हैं जिसका समाधान वह अपने माता-पिता, शिक्षकों अथवा साथियों से पूछकर करना चाहता है। अब उसे यह ज्ञात हो जाता है कि दूध को यदि भिन्न-भिन्न आकार के काँच के बोतल में रखा जाए तो उसका आकार भिन्न-भिन्न हो जाता है, क्योंकि तरल पदार्थों का आकार भिन्न परन्तु आयतन समान रहता है। इसी प्रकार वह गणित के जटिल प्रश्नों का हल करना भी सीख जाता
है।
संक्षेप में, बालक वातावरण के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए अनेक सामाजिक नियमों को सीख लेता है और उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगता है। वह अनेकानेक कार्यों में अपनी दक्षता, कुशलता एवं मानसिक प्रक्रिया का प्रयोग भी करता है।
(iv) फार्मल ऑपरेशनल अवस्था
(Formal Operational Period)
11 वर्ष की अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक को फॉरमल ऑपरेशन्स कहते हैं। इस अवस्था में बालक का मानसिक एवं बौद्धिक विकास इतना उन्नत हो जाता है कि वह विभिन्न ऑपरेशन्स को संगठित कर उच्च स्तर के ऑपरेशन का निर्माण कर सकता है। विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए वह केवल एक ही हल को नहीं ढूँढता है बल्कि वह अपने प्रयासों एवं परिकल्पनाओं के आधार पर अनेक हल ढूँढ़ लेता है। वह समस्याओं के समाधान के लिए अमूर्त नियमों का निर्माण तक कर सकता है।
संक्षेप में, अब बालक इतना काबिल हो जाता है कि वह अपनी समस्याओं का निराकरण स्वयं तो कर ही लेता है, साथ ही दूसरे लोगों की समस्याओं को भी सुलझाता है तथा नवीन आविष्कारों / खोजों द्वारा राष्ट्र को एक नई दिशा देता है वह प्रगति के पथ पर ले जाता है।
|
- प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
- प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
- प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
- प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
- प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
- प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
- प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
- प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
- प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
- प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
- प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
- प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
- प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
- प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
- प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
- प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
- प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
- प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
- प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
- प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
- प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
- प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
- प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
- प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
- प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
- प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
- प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?